हलाल और जो हलाल नहीं है वो हराम केवल माँस का ही विषय नहीं है। हलाल और हराम मूलतः विश्व भर के कार्य-व्यवहार पर इस्लामी दृष्टिपात है। इस्लाम की दृष्टि से क्या ठीक, करणीय है और क्या ग़लत है, हलाल-हराम उसका व्यवहार है। यह कार्य लगातार होता रहे इसकी व्यवस्था फ़तवे हैं।
आप जब हलाल माँस खाते, ख़रीदते हैं तो प्रकारांतर में इस व्यवस्था को अधिकृत करते हैं। इसमें सहयोग करते हैं। स्वतंत्र मानवाधिकार, प्रत्येक मनुष्य समान, स्त्री-पुरुष के अधिकार बराबर, स्त्रियों का सम्मान जैसी सभ्यता की कसौटियों के विरोध में आज भी खड़ी असभ्य, बर्बर व्यवस्था में भागीदार होते हैं।
हलाल को केवल माँस मत समझिये। यह पिछड़ी हुई, काल के कूड़ेदान में फेंकी जाने योग्य विषैली विचारधारा का उपकरण है। माँस तो इस आइसबर्ग का सामने दिखाई देने वाला 1/10 टुकड़ा भर है। 9/10 भाग तो जल में छुपा हुआ है जो मानव सभ्यता के टाइटनिक को डुबाने में लगा हुआ है।

इसका प्राणप्रण से विरोध कीजिये। न्यूनतम होटल, रेस्त्रां, ट्रेन, प्लेन में झटका माँस माँगिये। 100% तय है कि नहीं मिलेगा। इसके बाद लिखित में विरोध दर्ज करा कर आराम से वैज खाना खाइये।
इस विषैले चिंतन को हर तरफ़ से दबोचना, घेरना इसे ढेर करने की रणनीति है
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