समाजवादी विचारक जयप्रकाश नारायण के समक्ष 14 अप्रैल 1972 को मुरैना के जौरा में महात्मा गांधी की तस्वीर के सामने आत्मसमर्पण करने वाले पूर्व दस्यु मोहर सिंह का 86 वर्ष की उम्र में मंगलवार को निधन हो गया। वह 60 के दशक में चंबल के सबसे बड़े गिरोह के मुखिया थे। मोहर ने जेपी से बोला था कि बाबूजी सबसे पहले मैं आपके पास आया हूं, पहला सरेंडर तो मेरा ही होगा। एक खूंखार दस्यु के हृदय परिवर्तन की 48 वर्ष पुरानी इस घटना के प्रत्यक्षदर्शी रहे वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग ने दैनिक भास्कर को मोहर का वह साक्षात्कार मुहैया कराया जो, उन्होंने आत्मसमर्पण से पूर्व लिया था। उन्होंने पूर्व संपादक स्व. प्रभाष जोशी, गांधीवादी स्व. अनुपम मिश्रा के साथ इस घटनाक्रम पर एक पुस्तक ‘चंबल की बंदूकें गांधी के चरणों में’ भी लिखी है।
पुलिस लट्ठ देत थी, गांव बालन ने जमीन छिनाय लई तासे बागी बन गए
सवाल : बीहड़ में कितने वर्ष से हैं?
तेरह साल हो गए।
सवाल : बागी कैसे बन गए?
बागी हम ऐसे बन गए कि पुलिस रोज लट्ट देत थी और हमें थाने में बेंड़ देत थी।
सवाल : आप बागी कैसे बने?
जमीन छुड़ाई लई हमाई सगरी। लट्ठ से सिर फोड़ दओ। जटपुरे गांव की बात है पाल्टी बन्दी भई, गांव बालन ने लट्ठ से जमीन छिनाय लई, तासे बागी बन गए।
सवाल : गिरोह में कितने लोग हैं।
सैंतीस।
सवाल : ये जीवन कैसा लगता रहा?
नीको नाय लगत। बुरो लगत।
सवाल : हाजिर होने की बात आपसे किसने कही।
हमसे कई जे तहसीलदार दद्दू बैठे हैं, पुजारी हैं, रामदेव शर्मा, लोकमन, महाबीर।
सवाल : आपको इनकी बात अच्छी क्यों लगी?
अच्छी क्यों लगी? जनता में हम भी सामिल हैं। फायदा है, अपन आराम में रहेंगे जीवन बितीत करेंगे और का फायदा है?
सवाल : साथियों को कैसा लगा?
सबको अच्छौ लगौ। अच्छौ काम है। सबको अच्छौ लगो।
सवाल : आपने अपने साथियों को समझाया कैसे?
हमने जई बताई कि चलो अपने बच्चों में रहेंगे, अपने भाई-बन्धों में रहेंगे सब।
सवाल : विनोबाजी को देखा है?
हां। पहले जब आए। दौड़ा करो जब उनने तब देखो है। बिनके साथ हम दो घण्टा जेल में बिडे सो दो घंटा देखे।
सवाल : वे कैसे आदमी है?
विनोबाजी महात्मा हैं, बिनकी सबई बातें अच्छी लगत हैं।
सवाल :जयप्रकाश जी की?
सोई उनकी

तब जेपी से बोला था मोहर
सवाल : आपकी कैसी बंदूक है?
बन्दूक हम पै ऑटोमेटिक है।
सवाल : उसकी विशेषता क्या है?
चन्ती ना, बन्द रहत है।
सवाल : आप कितने दिनों बाद अपने गांव आए हैं?
तेरा साल बाद।
सवाल : इससे पहले कभी सुख की नींद सोए हैं?
नई! भगतई रहे हम तो।
सवाल :अब गांव वालों से मिले हैं, कैसा लगा आपको ?
भौत अच्छौ लगौ।
सवाल :आप दो दिन बाद आत्म समर्पण करने वाले हैं तो आपके मन में कैसे विचार आ रहे हैं, कैसा लग रहा है आपको?
हमको तो भौत अच्छा लग रहा है। जेल में जाएंगे, आराम में रहेंगे, भजन करेंगे। छूट जाएंगे तो अपने बुखरुआ हांकेंगे, खेती करेंगे।
सवाल :जेल से छूटने पर समाज की कटुता यदि बनी हो तो उसे कैसे हल करेंगे?
प्रेम सेईं हल करेंगे।
सवाल : कौन-सा धर्मग्रन्थ अच्छा लगता है?
रामायण अच्छी लगत है। पढ़ी तो मैं नाय, सुनी है चौपाई कोउ याद नाय हमें भैया।
सवाल : लिखने पढ़ने की इच्छा भी होती है?
होत तो हती लेकन पढ़ै नई हैं। हमतो भैंस चरावत ते। पढ़त कांते।
सवाल : पढ़ने का मौका मिलेगा तो पढ़ेंगे। सीख जाएंगे तो क्या पढ़ेंगे?
हां बिलकुल। फिर रामायण पढ़ेंगे। और का पढ़ेंगे।
सवाल : आपको देश विदेश की खबरें कैसे पता चलती थीं?
हां हां। अखबारों से पता चलत्तौ दुनिया कौ। जे मैं ना जनतौ कहां से आत ते।
सवाल : रेडियो भी सुनते होंगे?
हां हां। समाचार और भाषण भी सुन लेत ते, गानउ थोरे भौत सुन लेत ते।
सवाल : आपने शहर कितने सालों से नहीं देखा।
कबहूं नाय देखौ। गांव में रहत थे पहले तो हम।
सवाल : ऊंची पहाड़ी से आपने शहर की बिजली वगैरह तो देखी होगी?
सो तो देखी है। भौत अच्छी लगत ती। भां तो उजेरो होतौ खूब। सहर के बारे में कहत हैं कि अच्छी गली-फली है। अच्छौ बजार है। अच्छी दुकान-फुकान धरी है। पेड़ा, फेरा, जलेबी-फलेबी खायवे के खातर।
सवाल : सिनेमा वगैरह तो आपने देखा नहीं होगा?
नाय, कबहूं नाय देखा। इच्छा तो होत ती पर देखत कैसे। इच्छा होत तो खूब है मनो पहुंचो तो, जाय तबई तो।
164 बागियों ने किया था आत्मसमर्पण
मोहर सिंह ने जब आत्मसमर्पण किया तब उनकी उम्र करीब 37 वर्ष थी। उन्होंने अपनी एसएलआर बंदूक और 200 कारतूसों के साथ सरेंडर किया था। उनके साथ मोहर सिंह गैंग के कुल 44 बागियों ने महात्मा गांधी की तस्वीर के सामने हथियार डाले थे। 14 और 16 और 17 दिन यह आत्मसर्मपण की कार्यवाही चली और कुल 164 बागियों ने आत्मसमर्पण किया था।