भारतीय संस्कृति दुनिया के इतिहास में कई मायनों में विशेष महत्व रखती है। यह दुनिया की सबसे पुरानी संस्कृतियों में से एक है। भारत कई धार्मिक व्यवस्थाओं का जनक है, जैसे हिंदू धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म और सिख धर्म। इस मिश्रण से भारत में उत्पन्न विभिन्न धर्मों और परंपराओं ने भी दुनिया के विभिन्न हिस्सों को प्रभावित किया है। भारतीय संस्कृति कई हज़ार वर्ष से लेकर आज तक जीवित है। मगर वक्त के साथ इसमें बड़े पैमाने पर कई बदलाव भी आए है। आज हम जानने की कोशिश करेगे संस्कृति में आए बदलावों और इनसे देश और देश के लोगो पर पड़े प्रभावों को।

ऐसा नही है कि भारत की संस्कृति सिर्फ नकारात्मक तरिके से बदली है, इसमें कई सकारात्मक बदलाव भी आये है। लेकिन संस्कृत में आये कुछ बदलावों का भारत और इसके नागरिको/लोगो पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है।
भारत में बोली जाने वाली भाषाओँ (बोलियों) की बड़ी संख्या ने यहाँ की संस्कृति और पारंपरिक विविधता को बढ़ाया है। भारत में कुल मिलाकर 715 भाषाएं उपयोग में हैं। लेकिन दुःख की बात है कि वक्त के साथ साथ उन्हें बोलने वाले लोगो की संख्या तेजी के घट रही है। आज के भारत के नागरिको को यह लगता है कि अगर कोई भारतीय हिन्दी या अंग्रेजी का उपयोग नही करता है और किसी अन्य भाषा या बोली का उपयोग करता है तो वह व्यक्ति किसी पिछड़े गाँव का है और असभ्य है।

वैसे देखा जाये तो हिन्दी हमारे देश भारत की मातृ भाषा है लेकिन देश के कई इलाको में हिन्दी भाषा का नामोनिशान ही नही है। आज देश में हिन्दी से ज्यादा अंग्रेजी भाषा और इसे बोलने वाले लोगो को अहमियत मिलने लगी है।
कही न कही आज देश के लोगों में एक दूसरे और बड़ो के प्रति आदर की भावना खत्म होती जा रही है। हर कोई अपना उल्लू सीधा करने में लगा हुआ है। जहा लोगो की बीच प्यार और सम्मान हुआ करता था आज उसकी जगह पैसो ने ले ली है। आज भारत के लोगो को शिक्षा तो मिल रही है लेकिन देश आध्यात्मिक ज्ञान से दूर होता जा रहा है।

भारत के लोग खुद की संस्कृति और परम्पराओ के पीछे जो वैज्ञानिक (साइंटिफिक) कारण है उन्हें जानने के बजाए अन्य देशो की संस्कृति को अपना रहे है। जैसे खुद के देश की संस्कृति के खत्म होने से इन्हें कोई फर्क नही पड़ता। योग का ही उदाहरण ले लीजिये, योग का उल्लेख भारत के प्राचीन ग्रंथो और पतंजलि योग सूत्र में किया गया है। भारत के लोगो में योग पहले इतना प्रसिद्ध नही था जितना कि अन्य देशो द्वारा इसे स्वीकारने के बाद हुआ है। आयुर्वेद का उपयाग भी पहले से काफी कम हो गया है जिसका प्राचीन काल में भारत में अत्याधिक उपयोग किया जाता था।
भारत देश के लोग पहले अपने पूरे परिवार के साथ रहते थे लेकिन जैसे जैसे एकल परिवार (नुक्लेअर फॅमिली) का ट्रेंड बड रहा है लोगो को अब परिवार के चार लोगो के साथ भी रहना मंजूर नही कर पा रहे है। आखिर ये किस ओर जा रहा है हमारा भारत, इसकी संस्कृति और इसके लोग। अब लोगो के लिये परिवार और अपनों से ज्यादा खुद की इच्छाएँ और स्वार्थ ज्यादा मायने रखने लगा है।
भारत में दुनिया भर के धर्मों की सबसे अधिक विविधता है, जिनमें कुछ सबसे कट्टर धार्मिक संस्थान और संस्कृतियां शामिल हैं। आज भी धर्म यहाँ अधिक से अधिक लोगों के बीच मुख्य भूमिका निभाता है। एक समय था जब भारत के सभी धर्मो के लोगो ने साथ मिलकर देश से अंग्रेजो को बाहर उखाड़ फेका था। मगर अब देखो देश के लोग कैसे बदल रहे है, ये जात-धर्म के नाम पर आज आपस में ही एक दुसरे से लड़ रहे है। जिन धर्मो के लोग कल तक खुद को भाई भाई कहकर पुकारते थे वह दोनों खुद आज एक दुसरे का गला घोट रहे है।
शायद ये देश की बदलती हुई संस्कृति ही है, जिससे लोग असामाजिक तौर पर कार्य करने की परवर्ती अपना रहे है और जिसके कारण देश में गुनाह बड़ रहे है।
यही वो कारण है जिससे देश की संस्कृति बुरी तरह बदल रही है और इससे देश से साथ देश के लोग भी बुरी तरह प्रभावित हो रहे है। क्या अब देश के नागरिको का यह कर्तव्य नही बनता कि वो देश को सही दिशा देने की कोशिश करे बजाये ये जानने के कि आज किस हीरो, हिरोइन या नेता का जन्मदिन है। अब जरूरत है देश के लोगो द्वारा देश की संस्कृति को सही दिशा देने की।