- विवादित जमीन काेर्ट ने रामलला विराजमान काे साैंपी है, अभी तक सिर्फ योजनाएं ही बनीं
- महीने के 30 हजार रुपए ही मिले, पूजन के लिए तय रकम से ही काम चलाना पड़ रहा
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अयोध्या के लिए बड़ी-बड़ी योजनाओं की चर्चा हो रही है। लेकिन फैसले के 24 दिन बाद भी रामलला टेंट में ही विराजमान हैं। उनके अस्थायी मंदिर, पूजन सामग्री, वस्त्र आदि में कोई बदलाव नहीं है। रामलला के पास वस्त्राें के 21 सेट हैं। सर्दी के लिए गर्म कपड़ों की व्यवस्था है।
पुरानी व्यवस्था के अनुसार ही हो रहा पूजन
रामलला के मुख्य अर्चक सत्येंद्र दास कहते हैं कि रामलला के पक्ष में फैसले के बावजूद काेई बदलाव नहीं हुआ है। हमें अभी भी सुप्रीम कोर्ट के पुरानी पूजन व्यवस्था और यथास्थिति के आदेश के मुताबिक काम करना पड़ रहा है। पूजन के लिए तय रकम से ही काम चलाना पड़ रहा है। उन्हाेंने बताया कि अगस्त में परिसर के रिसीवर अयाेध्या के कमिश्नर ने साल के खर्च के लिए महीनाें के हिसाब से चेक दिए थे। हर महीने के 30 हजार रुपए मिले हैं। यह पूजन, भोग, आरती, पुष्प और शृंगार आदि पर खर्च होता है। पूजन में मुख्य अर्चक के साथ चार पुजारी और चार सहयोगी मदद करते है। सत्येंद्र दास ने बताया कि रामानंदी वैष्णव परंपरा के मुताबिक हर दिन रामलला की मंगला, शृंगार, भोग और शयन आरती के साथ बालभोग और राजभोग लगता है। रामलला का स्नान, शृंगार, चंदन, पुष्प आदि से अभिषेक होता है।
दर्शन को आने वाले श्रद्धलाओं की संख्या में मामूली बढ़त

फैसले के बाद रामलला के दर्शन करने वालों की संख्या में मामूली बढ़त हुई है। प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि औसतन 8 से 12 हजार लोग राेज दर्शन पूजन कर रहे हैं। 2 दिसंबर को 11,649 दर्शनार्थी पहुंचे। सुरक्षा मानक पहले की तरह कड़े हैं। श्रद्धालु चढ़ावे के लिए पारदर्शी थैली में ऐसी सामग्री ले जा सकते हैं, जिसे सुरक्षा के लिहाज से इजाजत मिले। यदि कोई लड्डू चढ़ाना चाहता है तो उसे फोड़ना पड़ता है।
ट्रस्ट बनने तक जारी रहेगी पुरानी व्यवस्था
सत्येंद्र दास ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा नया ट्रस्ट बनाए जाने तक यह व्यवस्था चलेगी। कोर्ट ने ट्रस्ट बनाने के लिए सरकार को तीन महीने का समय दिया है। रामलला विराजमान के वकील मदनमोहन पांडेय ने कहा कि जल्द ही ट्रस्ट गठित हाेगा। इस बड़े बदलाव में कानून का ध्यान रखना जरूरी है। मुस्लिम पक्ष की रिव्यू पिटीशन के मद्देनजर कानून का ध्यान रखना जरूरी है। ट्रस्ट के गठन और 67 एकड़ भूमि ट्रस्ट को सौंपे जाने के बाद हालात में तेजी से बदलाव होगा। ट्रस्ट का गठन ट्रस्ट एक्ट के तहत हो या संसद में कानून बनाकर, यह भी केंद्र सरकार को तय करना है।